

*30 वर्षों से चल रही है –ब्रम्हा जी की प्राचीन मुर्ति की पुजा* ——-पुरातत्व समिति के अध्यक्ष
घनश्याम सिंह नाग एवं सचिव लोकेश गायकवाड़ को पुरातात्विक भ्रमण के दौरान मयूरडोंगर नामक गांव में ब्रम्हा जी एक मूर्ति मिली है। यह मूर्ति पुरातात्विक दृष्टि से प्राचीन तो नही है। किन्तु बस्तर की धरती पर एकमात्र ब्रहमा जी मूर्ति होने के कारण उल्लेखनीय है। पुजारी तेजे स्वर पोयाम ने बताया कि उनके दादा भीमसेन पोयाम ने ब्रम्हा जी की मूर्ति बनाकर आज से लगभग –30 वर्ष पूर्व स्थापना करवाई थी। –चार-मुखों वाले ब्रम्हा जी की मूर्ति लगभग 5 फुट ऊंची व काले ग्रेनाईट की बनी है। ब्रम्हा जी की मूर्ति के बगल में कछुए की प्रस्तर प्रतिमा है। कछुआ के सामने कुंडली मार कर दो सर्प अंकित किया गया है। भीमसेन पोयाम परिवार के काम भी करते थे।
गांचा पर्व, महाशिवरात्रि, लोकपर्व आमा जोगानी अक्षय तृतीया आदि पर्वो पर यहां विशेष रूप से पूजा होती है। चैत्र नवरात्रि एवं शारदीय नवरात्रि में यहां मनो-कामना ज्योत जलाए जाते हैं। मंदिर के सामने लगभग 20 फुट ऊंचा गरुड़ स्तंभ है। स्तंभ में रिलिालेख की भांति कुछ शब्द उकेर गये हैं’ किन्तु इन्हे आसानी से नही पढ़ा जा सकता। मंदिर परिसर में बरगद पेड़ के नीचे शिवलिंग एवं हनुमान जी प्रतिमा स्थापित
तीन पीढ़ियों से, अर्थात लगभग 50 वर्ष से यहां ब्रम्हा जी की यहां पूजा हो रही है, किन्तु जंगल किनारे स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए कोई सुगम मार्ग नहीं है.. इसलिए श्रद्धालु बस, पहुंच पाते हैं।
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